Tuesday, January 24, 2012

सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुडे़ उम्मीदवार

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

चुनाव प्रचार पर चुनाव आयोग के डंडे के डर से इस बार बैनर, झंडों, पोस्टर व अन्य प्रकार की सामग्री तो उम्मीदवार प्रयोग नहीं कर पा रहे, लेकिन हाईटेक युग में एक-दूसरे के साथ कनेक्ट रहने का माध्यम बनी सोशल नेटवर्किंग साइट्स को उम्मीदवारों ने हाईटेक प्रचार का अंग बना लिया है। इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उम्मीदवारों और उनके समर्थकों की ओर से अपने सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए दोस्तों से अपने उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान की अपील की जा रही है।

हाईटेक युग में भारी संख्या में लोग इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। फाजिल्का की बात करें तो बीएसएनएल, कनेक्ट सहित विभिन्न दूरसंचार कंपनियों के करीब तीन हजार कनेक्शन हैं। एक कनेक्शन को एवरेज 5-7 लोग इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार इंटरनेट प्रयोग करने वाले करीब 20 हजार लोगों में से 10 हजार से अधिक लोग फेसबुक, ट्वीटर, आरकुट सरीखी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इतने बड़े समूह में अपना संदेश पहुंचाने के लिए जहां उम्मीदवार अपनी साइट से अपने फ्रेंडशिप सर्किल में अपना प्रचार कर रहे हैं वहीं उनके समर्थक भी अपने सर्किल में अपने उम्मीदवार को जिताने की अपील कर रहे हैं। इसका सीधा फायदा ये है कि फ्री में प्रचार हो रहा है वहीं इन साइट्स पर चुनाव आयोग की टेढ़ी नजर न होने का फायदा भी उम्मीदवारों को मिल रहा है।

इस बारे में एडीसी कम सहायक चुनाव अधिकारी चरणदेव सिंह मान से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इंटरनेट के जरिये चुनावी विज्ञापनों पर रोक तो है लेकिन अभी तक उन्हें इस बारे में कोई हिदायत नहीं मिली है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हो रहा प्रचार विज्ञापन की श्रेणी में आता है या नहीं।

http://www.jagran.com/punjab/firozpur-8809778.html

Friday, January 20, 2012

बाधा लेक के पक्ष में उतरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी कौंसिल

बाधा झील और बंगला किनारे पुडा की ओर से बसाई जाने वाली कॉलोनी के मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, पंजाब स्टेट साइंस एंड टेक्नोलॉजी कौंसिल और पंजाब फॉरेस्ट एंड वाइल्डलाइफ डिपार्टमेंट को नोटिस भेज कर जवाब देने का आदेश जारी किया था, लेकिन सिर्फ पंजाब स्टेट साइंस एंड टेक्नोलॉजी कौंसिल ने ही जवाब दिया है। 
जबकि अन्य दोनों विभागों को 21 मार्च तक जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने इन विभागों से पूछा था कि पुडा की ओर से बाधा लेक किनारे कॉलोनी बसाने से वहां के वातावरण और प्रकृति पर क्या असर पड़ेगा। फॉरेस्ट विभाग से पूछा गया था कि वहां पेड़ों को काटने से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा। 
साइंस एंड टेक्नोलॉजी कौंसिल ने अदालत में बताया कि लेक क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है और इस लेक को बचाने के लिए उपाय करने चाहिए। याद रहे कि पुडा की ओर से कोर्ट में बताया गया है कि मौके पर कुछ ही पेड़ हैं। चीफ जस्टिस एमएम कुमार और जस्टिस राजीव नारायण रेना की बेंच ने इसकी रिपोर्ट मांगी है। यह याचिका फाजिल्का के जागरूक नागरिक नवदीप असीजा की और से दायर की गई है। (लछमण)

पुडा के पास फंसे लोगों के साढ़े छह करोड़

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

पर्यावरण संरक्षण के नियमों की अनदेखी करने के खिलाफ दायर याचिका के चलते फाजिल्का में सूख चुकी बाधा झील के किनारे कालोनी काटने की पंजाब अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी (पुडा) की उम्मीदों को झटका लगा है। मामला हाईकोर्ट में जाने के चलते लोगों द्वारा उक्त कालोनी में प्लाट की बोली में शामिल होने के लिए जमा करवाए करीब साढ़े छह करोड़ रुपये भी फंस गए हैं।

बता दें कि पुडा ने फाजिल्का में सूख चुकी बाधा झील के किनारे पांच एकड़ भूमि में कालोनी काटने की घोषणा की थी। साथ ही इस संबंधी मुनादी करवाकर व इश्तहार जारी करवा लोगों से बोली में शामिल होने के लिए रुपये भी जमा करवाए थे। सैकड़ों लोगों ने कालोनी में प्लाट हासिल करने के लिए करीब साढ़े छह करोड़ रुपये जमा करवाए हैं। लेकिन इससे टूरिस्ट प्लेस व पर्यावरण संरक्षण के तहत कालोनी के कारण बाधा झील बचाने के प्रयास समाप्त होने की आशंका के चलते स्थानीय निवासी सिविल इंजीनियर नवदीप असीजा ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कालोनी निर्माण रोकने की गुहार लगाई थी। याचिका में असीजा ने कहा कि पुडा ने कालोनी काटने से पहले पंजाब स्टेट साइंस एंड टेक्नोलोजी काउंसिल, पंजाब फारेस्ट एंड वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट एवं पंजाब प्रदूषण नियंत्रण विभाग से सहमती हासिल नहीं की। इंजीनियर असीजा ने याचिका में इस बात का हवाला भी दिया था कि पंजाब स्टेट साइंस एंड टेक्नोलोजी काउंसिल ने उक्त जगह पर पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से पंजाब के 32 वेटलैंड में शामिल फाजिल्का बाधा झील को बचाने की सिफारिश की हुई है। इस पर हाईकोर्ट ने तीनों विभागों को तलब किया है। 17 जनवरी को पंजाब स्टेट साइंस एंड टेक्नोलोजी काउंसिल ने तो अपना वकील भेज जवाब दे दिया, जबकि अन्य दो विभाग पेश नहीं हुए। मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई व जस्टिस मोहित ग्रोवर की बैंच ने अगली सुनवाई 21 मार्च को मुकर्रर की है।

Thursday, January 19, 2012

‘Technology in harmony with nature is need of the hour’ - Atul Kirloskar on Fazilka Ago Park

There is ENDLESS SCOPE For POWER GENERATION FROM AGRI WASTE IN NORTH INDIA, SAYS ATUL KIRLOSKAR, cmd, KIRLOSKAR GROUP, IN AN Interaction WITH JATIN TAKKAR, Daily Post, 19 January 2012, Daily Business

Kirloskar Group is a $1.20 billion engineering conglomerate driving critical industries. The Group is a century old pioneer in areas like power, construction, mining, agriculture, transport, oil, gas and environment protection industry, with a range of world-class industrial products and turnkey services. The Group is made up of eight major companies, each led by the best engineering and managerial talent in India. "We have a group turnover of Rs 2,000 crore approximately. We make equipment, machinery and high-precision engineering products for the transport sector, including shipbuilding, railways, roads and cargo," said Atul Kirloskar, Chairman and Managing Director, Kirloskar Group, while interacting with Daily Post. He said that the Group had a major presence in the auto components, rubber and plastics, textiles and also consumer goods industries. "In addition to engineering, we have interests in civic utility systems and in Information Technology (IT) and communications sector as well," he said. Here are excerpts: 

Tell us something about your company's Agro Park venture being set up in Fazilka.


Agro Park is based on public private partnership (PPP) model. The project is being jointly executed by Punjab Agro Industries Corporation Limited (PAIC) and Sampuran Agri Ventures, a unit of food-processing company Nasa Agro and Kirloskar Group. Under the project, water bodies would be created over the land, which have turned waste due to waterlogging, by creating crystals of sodium, cleaning the water for agriculture and drinking purpose, and subsequently using the surplus water for the production of fish. 

What role does your company play in the Agro Park project? 

We have developed a paddy straw based biogas plant, specifically for this region with forward integration to use brackish water for biogas digesters and processing paddy straw residue into bio-fertilisers with silica, cellulose and lignin content ideal to revive the alkaline soils and promote other allied activities for the economic development of the region. Besides this, we have 10 per cent stake in the park. The park would be generating 30,000 cubic litres of bio-gas from paddy straw, which in result will generate one megawatt power.

Your Group is focusing on sustainable development technologies. Your take, please. 

The sustainable development has always been an important aspect of our value system and we have always demonstrated the same through our actions. We are committed to contribute in reducing the greenhouse gas (GHG) emissions by implementing green technologies. The waste disposal is a major problem faced in the agriculture and industry sector, as well as the municipal corporations. Our Group firm Kirloskar Intergrated Technology Limited (KITL), has an exhaustive research background in 'biomass to energy' processes and has filed several patents in these areas. The company offers distributed sustainable solutions in green technologies and renewable energy on turnkey basis.

What are the products offered by KITL for generating energy through renewable sources?

Our Group is providing renewable energy solutions under five models, while Kirloskar Sanjeevani Home Energy System is specifically meant for the rural areas of India. It is a hybrid system of biogas and solar power comes with two cubic per metre biogas plant, two solar panels, two solar lanterns and biogas stove. We have come up with biogas based rural energy solutions also. Beside this, the biogas based solutions, which has been innovated by KITL are generating local employment to enrich and empower the rural people of the nation. We think that we are moving in the right direction with all seriousness.

Wednesday, January 18, 2012

जल, पानी और संसाधनों की बचत देश का खजाना

गांव कौडियांवाली में स्थित आदर्श मॉडल स्कूल में पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संगठन की ओर से संस्थानिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। 
इसमें आईआईटी रूड़की से सेवानिवृत प्रोफेसर व ऊर्जा पुरुष डॉक्टर भूपिंद्र सिंह विशेष तौर पर पहुंचे। कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को पर्यावरण सरंक्षण व प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग के प्रति जागरूक करना था। 
कार्यक्रम में ग्रेजुएट्स वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का के अध्यक्ष एडवोकेट उमेश कुक्कड़ मुख्य अतिथि थे, जबकि अध्यक्षता प्रिंसिपल अश्वनी आहूजा ने की। इस मौके पर डॉक्टर भूपिंद्र सिंह ने शुद्ध जल, वायु और संसाधनों की बचत करना ही देश के लिए आर्थिक स्तर पर लाभप्रद बताया। कार्यक्रम की संयोजक शीनम गोकलानी थी। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ऊर्जा संरक्षण विषय पर क्विज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
इसमें अजय कुमार ने प्रथम, पूजा ने द्वितीय और समरीत ने तृतीय स्थान हासिल किया। एडवोकेट उमेश कुक्कड़ ने बच्चों को जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों व प्रबंध के बारे में जानकारी दी।
इस मौके पर हास्य कलाकार जसपाल भट्ठी की ओर से निर्देशित घरेलू ऊर्जा सरंक्षण पर एक डाक्यूमेंट्री भी दिखाई गई। इस मौके पर मनीष गुप्ता, परविंद्र कौर, आज्ञाकार सिंह, सुनीता वधवा, जगदीप सिंह, राम अचल यादव, प्रदीप पाहवा आदि मौजूद थे। (लछमण)

फाजिल्का वासी चाहते हैं पर्यावरण पर लड़ें नेता

सभी सियासी दलों की ओर से राज्य के विकास और लोगों को सुविधाएं देने का वादा स्टेजों पर गूंज रहा है, मगर अब लोग इसके साथ ही पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को भी चुनाव अभियान का हिस्सा बनाने की मांग करने लगे हैं। लोगों का सियासी पार्टियों से अनुरोध है कि विधानसभा चुनाव में हरित ऊर्जा के स्रोतों के उपयोग से जुड़े मुद्दे को चुनाव प्रचार का अभिन्न हिस्सा बनाएं। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को उठाएं। 
मालवा रोगों की चपेट में 
एडवोकेट मनोज त्रिपाठी का कहना है कि आज पर्यावरण तेजी से बिगड़ रहा है। खासकर मालवा क्षेत्र में लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार हैं। जिला फाजिल्का और फिरोजपुर में बहने वाले सतलुज दरिया के दूषित पानी का कुप्रभाव लोगों पर पड़ा है। इस कारण फाजिल्का के गांव तेजा रुहेला और दोना नानका में अधिकांश ग्रामीण बीमारियों से पीडि़त हैं। असर भावी पीढ़ी पर
इंजीनियर नवदीप असीजा ने बताया कि राज्य में 32 वैटलैंड थी, लेकिन अब वैटलैंड के नाम पर कुछ नहीं रहा। देशभर में दूषित हो रहे पर्यावरण का असर भावी पीढ़ी पर पड़ेगा। इससे बचने के लिए पानी और बिजली के बेवजह का इस्तेमाल रोका जाए। उम्मीद है कि पर्यावरण को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जाए। 
पानी सबके लिए जरूरी 
लेक्चरर अश्वनी आहूजा के अनुसार जलस्रोतों एवं जल निकायों की गंभीर उपेक्षा, भू-जल के बेतरतीब दोहन आदि से साफ जाहिर है कि आम आदमी तक पानी पहुंचाने की घोषणाएं निरर्थक हो चुकी हैं। चाहे किसानी का मसला हो या व्यक्तिगत उपयोग का, पानी की जरूरत तो जीव-जंतु-इंसान सभी को होती है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए ऐसे मुद्दे उठने चाहिए।पैदा होगी अन्न की कमी 
जमींदारा फार्मासल्यूशन के निदेशक विक्रम आहूजा का कहना है कि पर्यावरण दूषित होने के असर सभी जीव-जंतुओं पर पड़ रहा है। मित्र कीड़ों की कमी हो रही है। भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होने लगी है। अगर ऐसा रहा तो आने वाले समय में अन्न की कमी हो जाएगी, इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण को मुद्दा बनाया जाए।

संसाधनों की बचत देश के लिए जरूरी : डा. भुपेंद्र

अपने सूत्र, फाजिल्का

गांव कौड़ियावाली स्थित आदर्श माडल स्कूल में भारत सरकार के पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के उपक्रम पैट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संगठन की ओर से प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसका नेतृत्व आईआईटी रूड़की से सेवानिवृत प्रोफेसर एवं ऊर्जा पुरुष के रूप में विख्यात डा. भूपेन्द्र सिंह ने किया।

कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को पर्यावरण संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग के प्रति जागरूक करना था। कार्यक्रम के मुख्यातिथि एडवोकेट एवं ग्रेजुएट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष उमेश कुक्कड़ थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रिंसिपल अश्विनी आहूजा ने की। इस अवसर पर डा. भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि शुद्ध जल, शुद्ध वायु और संसाधनों की बचत करना देश के लिए आर्थिक स्तर पर लाभप्रद होगा। कार्यक्रम की संयोजक शीनम गोकलानी थीं। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ऊर्जा संरक्षण विषय पर क्विज भी करवाया गया। इसमें आठवीं एवं नौवीं के विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में अजय कुमार ने प्रथम, पूजा ने द्वितीय और समरीत ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। इस अवसर पर प्रसिद्ध कलाकार जसपाल भट्टी द्वारा निर्देशित घरेलू ऊर्जा संरक्षण पर एक डाक्यूमेंट्री भी दिखाई गई। इस अवसर पर मनीष कुमार गुप्ता, परविंदर कौर, आज्ञाकार सिंह, सुनील वधवा, जगदीप सिंह, राम अचल यादव व प्रदीप चावला मौजूद थे।

बाक्स

पर्यावरण बचाने के लिए निकाली रैली

इको क्लब सरकारी मिडिल स्कूल रामकोट की ओर से वृक्षों को बचाने व वातावरण को साफ-सुथरा और हरा भरा बनाने के लिए रामकोट गांव में रैली निकाली गई। इस दौरान बच्चों व अध्यापकों ने बैनर व पोस्टरों के माध्यम से वातावरण को साफ रखने के लिए लोगों को जागरूक किया औन पेड़ों की रक्षा करने का प्रण दिलाया|

Saturday, January 14, 2012

पंजाब की विशेषता धनी संस्कृति : डेनिस

जागरण संवाददाता, फाजिल्का

पंजाब की विशेषता यहां की अमीर संस्कृति है। इसे यहां के लोग व शैक्षणिक संगठन बेहतर ढंग से विकसित कर रहे हैं। यह शब्द ब्रिगेडियर अरुल डेनिस ने गीता इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलोजी की ओर से राम पैलेस में आयोजित वार्षिकोत्सव एवं लोहड़ी पर्व पर आयोजित जश्न-2012 में बतौर मुख्यातिथि के रूप में हिस्सा लेते कहे।

कार्यक्रम की शुरूआत ब्रिगेडियर डेनिस व उनकी पत्‍‌नी शांति डेनिस और इंस्टीट्यूट के स्टाफ ने दीप प्रज्ज्वलित कर की। कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों ने भंगड़ा, गिद्दा, देशभक्ति पर शहीद भगत सिंह की जीवनी पर आधारित कोरियोग्राफी प्रस्तुत कर खूब वाहवाही लूटी। उपस्थिति को शिक्षाविद् राजकिशोर कालड़ा, टेक चंद धूड़िया, लेक्चरर विजय मोंगा, शक्ति उतरेजा, पंकज धमीजा ने भी संबोधित किया। इंस्टीट्यूट के निदेशक डा. विनोद कुमार ने उपस्थिति का आभार प्रकट किया। इस दौरान सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी के घोषित एमबीए की परीक्षा में अव्वल मेजर शलभ चौधरी, संदीप बठला, रोहित सिडाना व राघव बिहाणी को भी सम्मानित किया गया। डा. विनोद कुमार व स्टाफ ने मुख्यातिथि ब्रिगेडियर डेनिस, विशिष्ट अतिथि कर्नल आशुतोष बहुगुणा, मेजर शलभ चौधरी, डीसीजी (बीएसएफ) सुखदेव, टेक चंद धूड़िया, विक्टर छाबड़ा, राजकिशोर कालड़ा, प्रिंसिपल दयानंद, कैप्टन गौरव राठी, विजय मोंगा, संदीप बठला व अन्य मेहमानों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।

Friday, January 13, 2012

Fazilka Tourism : Jyani Natural Farm - Farm Tourism in Fazilka

Jyani Natural Farm, Katehra, Fazilka (Punjab) documentary made by students of Asian Pacific Institute of Management, New Delhi on a visit to a Farmhouse Holiday

Part I
https://www.youtube.com/watch?v=HHhX-RQt2p8


Thursday, January 12, 2012

A rickshaw puller and an author of four books

Lucknow: Rehman Ali Rehman, a rickshaw puller in Uttar Pradesh's Basti district, doesn't mind if has to wait long for a customer. He uses the time to scribble on pieces of paper - poems for his forthcoming book.

Rehman, a native of Badeban village in Basti district, has already penned four books that have a total collection of around 400 poems on topics like national integration, communal harmony, water woes and corruption.

"I don't mind when I don't get a 'savari' (customer) for my rickshaw, as I utilise the time in writing poems," Rehman, 55, told IANS on a mobile phone arranged by a local in Basti, some 300 km from here.

A rickshaw puller and an author of four books

"Writing poems is an integral part of my life. I feel it is a driving force that gives me strength to face hardships of life," he said.

Rehman, a school dropout, always wanted to become a writer.

"My father was a small famer. When I was about to pass Class 10, my father had nothing left to spend on our family. The small farm we had was also sold for my studies," he recalled.

"After my father's death, I left my studies and took up menial jobs. I had no resources and time to pursue my ambition."

Rehman then went to Kanpur and worked at a cinema hall.

"I got to watch Hindi movies at the cinema hall. I used to listen to songs carefully and noted some words from them. Thereafter, I tried to write songs on my own."

With his songs, Rehman became popular among the cinema hall staff.

"They (cinema hall officials) often listened to my songs. They motivated me to take up a writer's job. I just felt on top of the world when they appreciated me for my songs," he said.

"Earlier, I used to write songs on love relationships, but later I started writing poems on national integration, communal harmony and other topics."

He later moved back to his native village where he got married and started working as a rickshaw-puller but continued to write songs and poems.

Rehman got his first book published with assistance from a customer, who happened to be a writer.

"A 'savari' once noticed me writing on a piece of paper. He asked me about it after which he came to know about my aspirations."

"He invited me to recite poems at a function at the district Kanpur jail on Republic Day," he added.

Unaware of what life had in store for him, Rehman participated in the function and discovered that the man who invited him was Ram Krishna Lal 'Jagmag' - a humour poet (satirist).

"He is my first guru, who in a way gave me a break to showcase my skills. During the function, I came in contact with several writers who suggested to me to get my poems published in a book," said Rehman.

At another function, he met some teachers of Gorakhpur and members of Kanpur-based Manas Sangam - an organisation involved in the promotion of Hindi literature, and with their help he got his first book "Kuch Kavitayen" published in 2005.

Rehman authored three more books - "Rehman Ram Ka payara ho", "Mat vyarth karo pani ko" and "Kaise Samjhe hua vihaan".

Manas Sangam convener Badri Narain Tiwari told IANS, "Rahman is just amazing in every sense. His sustained efforts at writing poems despite the unfavourable conditions really need to be acknowledged."

"He is a living example for those who think that a mission cannot be achieved with limited resources," Tiwari said.

Rehman lives in a small rented room in Basti and has no complaints with the almighty.

"I just thank Him for helping me achieve what I had always dreamt of."

"Though poor living conditions didn't allow me to take proper care of my six children, I feel they too would be able to survive hardships of life," said Rehman, adding that he is working on a couple of books.

While Rehman has got his three daughters married, his three sons work as labourers.

http://ibnlive.in.com/news/a-rickshaw-puller-and-an-author-of-four-books/140682-40-103.html

Tuesday, January 10, 2012

Panel wants infrastructure for green vehicles

As more and more private vehicles add to city roads, increasing congestion and pollution, the Government may promote non-motorised transport (NMT) modes like cycling — at its own expense. A working group, set up by the Planning Commission to chalk out strategy for urban transport in the 12th Plan (2012-17), has suggested that the Government must build infrastructure for zero-pollution modes of transport like cycling and cycle rickshaw. The group is headed by Delhi Metro ex-chief E Sreedharan.

The working group report, which would form basis of urban transport in the 12th Plan, proposes a new scheme to promote bicycles, developing walking facilities and modernisation of rickshaws. The report says, "The infrastructure cost for these would be borne by the Government while the operation and maintenance should be on Public Private Partnership (PPP)." The Government must provide facilities for walking and cycling in all 2-lakh plus cities and State capitals. The scheme should be called 'public bicycle scheme'.

In larger cities of 5-lakh plus population, ITS-enabled public bicycle schemes with modern cycles would be introduced with a complete infrastructure cost of cycles and cycle stands as well as control centre being borne by the Government whereas the operation and maintenance to be done through PPP. To make cycling a fashion statement in India and to provide safe pedestrian and cycle infrastructure, it recommends to have a dedicated NMT cell in each municipality/municipal corporation.

Also, there is a need to develop an upgraded cycle rickshaw as an integral part of the last mile connectivity for city-wide public transport network as metro reaches to more cities. Several American and European manufacturers of cycle rickshaws, often incorporate features not found in developing world vehicles, such as hydraulic disc brakes, and lightweight fibre-glass bodies, multispeed gears to lessen the effort for the rickshaw puller. Similar upgrades are needed in India. This is not only a non-polluting mode but also a major employment generator.

For all this, the Government must provide 100 per cent funding. The group has estimated a total cost of Rs 15,451 crore for this over the next five years.

The report reveals that use of NMT has declined sharply, especially that of cycling and cycle-rickshaws. Road congestion, increase in trip length due to urban sprawl, increase in purchase power of people and totally inadequate facilities for cycling have all contributed to reducing cycling to less than 11 per cent of the mode share which is down from nearly 30 per cent in 1994. And pedestrians also continue to be neglected.

It underlines that the present model share of public transport and NMT should not be allowed to decline in the 12th plan. NMT should get first priority in infrastructure development and funding. Funds allocation for major transport infrastructure should be linked to achieving targets for creating facilities for NMT.

http://dailypioneer.com/nation/33213-panel-wants-infrastructure-for-green-vehicles.html

Entrepreneur January 2012 Issue : One for the Road : these three start-ups are on the route to success

Sunday, January 8, 2012

Fast lane in Corbusier’s Chandigarh

Gautam Dheer

Broad, swanky roads meandering along impeccable lush green gardens and finely landscaped roundabouts in French architect Le Corbusier-designed Chandigarh provides a glimpse into what epitomises this city's fondness for good surface driving and public transport.

Chandigarh's well-laid out public transport system, commended as one of the finest in the country, is envy of all, despite the perplexing, albeit factual, contradiction of sorts it lives with.

Here's why. With nearly 8.5 lakh registered vehicles for a population of about 10.5 lakh, Chandigarh has the highest motor vehicle ownership in India, arguably an indicator of a 'deficient' public transport system anywhere. But the city defies this rationale. Its public transport system is equally in vogue. Much of this is because the number of passengers per bus at 2,239 persons is the lowest in India. The figure leaves much to mull for states like Bihar, which is at rock bottom on the charts among other competing states on this count.

Chandigarh's bus occupancy ratio is scoring high at 92 per cent, its fleet is the youngest and the city synergies put public transport on a fast track. In fact, notwithstanding criticism at times from certain avant-garde planners and architects, Le Corbusier's master plan for Chandigarh effectively denote the significance of public transport system. Corbusier's plan puts in place a matrix of bus stops on grids at barely 200 meters from the roundabouts so as to serve the four pedestrian entrances into a sector in the city.

Why better off?

So what is it that makes this Union Territory's public transport model stand out among the rest? Chandigarh is one of the few cities, if not the lone one in the country, which is designed on a 'grid-iron road' pattern, Navdeep Asija, an IIT Delhi graduate and an expert in road and transport engineering, said. "Roads here run on a grid system, often parallel to each other. The design provides a effectively functional transport system where the average trip for passengers is short and consumes much less time," he said. Chandigarh's transport fleet of 417 buses is the youngest in India. The average age of a bus is three years, something which must hurt Gujarat's much exhibited development model given that the average age of a bus in Modi's state capital Ahmedabad is seven years. Bangalore is closest to Chandigarh as far as age and health of a bus goes.

A recent comprehensive study on city's public transport system, conducted by Navdeep Asija – the man credited for launch of eco-cab rickshaws in Punjab - brings out more about its numero uno status. Chandigarh has the best 'walk-to-bus' concept, he said. "A walk of 500-metres or less is often considered favourable for use of public transport. If more, it is considered discouraging. Chandigarh on an average leaves passengers to walk barely 300 metres," Navdeep said. The study reveals that nearly 25 per cent of the city prefers public buses.

Notwithstanding the fact that some of the well-cushioned air-conditioned buses in Chandigarh provide cheap hotspot 'dating-on-wheel' options for teenagers, a high of 50 per cent passengers use this mode of transport for office purposes. "An encouraging 17 per cent use it for fulfilling educational pursuits", the study said. The efficient public transport system in Chandigarh comes as a dampener for autorickshaw drivers. The study says that the auto share in dispersing passengers is just about 12 per cent.

So how does Chandigarh cope with this dichotomy of sorts of side-by-side growth of both the public transport system and private transport, including many high-end luxury cars in a city that boasts of the highest per capita income in the country. The answer, says Navdeep, lies in the high usage of public transport  by residents of city's satellite townships. "Against 12 cars per 1000 persons in India, Chandigarh has around 800 cars per thousand persons, fast closing up to the figure that exists in the US. At the same time, public transport enjoys considerable support. Its large subscribers are people who commute from many neighbouring townships," he opined.  
Certain bus stops on the grid system offer electronic public display systems which spell out handy information like time of arrival of next bus at the stop. A top official of the UT administration said more ways to reduce pressure on the city roads are being worked out, including  an aggressive plan to have multiple modes of transportation like the metro rail for which preparation of a detailed project report is underway. Dedicated lanes for movement of traffic is also being planned, he said.

http://www.deccanherald.com/content/217536/fast-lane-corbusiers-chandigarh.html

Punjab hospital held guilty of unfair trade practice

New Delhi, Jan 8 (PTI) A Punjab hospital, found using an unqualified compounder for administering a crucial injection to a heart patient, who eventually died, has been held guilty of resorting to unfair trade practices by the country's apex consumer forum. The National Consumer Disputes Redressal Commission (NRDRC) also ordered the hospital to pay a compensation of Rs 50,000 to the patient's family members for its unfair trade practices. The NCDRC, bench of Justice R C Jain and member S K Naik, however, absolved the hospital of the charges of committing the medical negligence in the treatment of the heart patient. The NCDRC order came on an appeal by Fazilka-based Jassi Hospital and Heart Care Centre, challenging Punjab State Consumer Commission order, holding the hospital guilty of indulging in unfair trade practices but absolving it of graver charges of medical negligence. "In this case, order of state commission has dealt at length the evidence on the engagement of untrained/unqualified staff by the Jassi Hospital and Heart Care Centre and, so we do not find any merit in this revision petition. The revision petition, accordingly, is dismissed," said NCDRC upholding the state commission's order. 

http://ibnlive.in.com/generalnewsfeed/news/punjab-hospital-held-guilty-of-unfair-trade-practice/947779.html

Thursday, January 5, 2012

Welfare schemes for ecocab operators

Tribune, Our Correspondent

Fazilka, January 4
To make Fazilka's world famous ecocab system more operator-friendly and hi-tech, the Graduate Welfare Association, Fazilka (GWAF), after winning the prestigious National Urban Mobility Award-2011 by the Union Ministry of Urban Development, last month, has come up with welfare schemes for ecocab operators from the current year.

GWAF started distributing branded shoes from today to the traction men. "One-fourth of the total cost would be paid by the operators and rest shall be borne by the GWAF," informed GWAF general secretary Navdeep Asija. GWAF patron Dr Bhupinder Singh distributed the shoes amongst a dozen operators.

Asija said that tenders have been invited to purchase 200 GSM based mobile phones for the ecocab operators. At present, there are about 500 traction men in Fazilka, of which 350 have registered themselves with the project.

Development of new ecocab machines, designed with less weight, is also in the pipeline. For performance evaluation, it will be handed over to the Ecocabs Fazilka on January 10 and after receiving their feedback, the next fleet shall be delivered.

"In the mean time, five new ecocabs of the existing model with new children's seat shall be handed over to next batch of five beneficiaries on January 7," he said.

http://www.tribuneindia.com/2012/20120105/bathinda.htm#5

Wednesday, January 4, 2012

जीडब्ल्यूए ने रिक्शा चालकों को जूते बांटे

जागरण संवाददाता, फाजिल्का

ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से मंगलवार को रिक्शा चालकों के जीवन स्तर को ऊंचा करने के प्रयासों के तहत उनको जूते बांटे गए।

एसोसिएशन के संरक्षक डा.भूपेंद्र सिंह ने बताया कि एसोसिएशन अब तक रिक्शा चालकों के लिए नई ईको कैब के अलावा नगर परिषद के सहयोग से रिक्शा स्टैंडों, रिक्शा चालकों के बीमे का प्रबंध व शहर के प्रमुख चिकित्सकों के पास उनके पहचान पत्र बनवा चुकी है। साथ ही, डायल-ए-रिक्शा सर्विस के जरिए एसोसिएशन ने फाजिल्का को देश की पहली ऐसी सेवा शुरू करवाने वाले शहर का रुतबा दिला चुकी है। हाल में रिक्शा सर्विस को एंड्रायड एप्लीकेशन पर भी उपलब्ध कराया गया है। उसी कड़ी में मंगलवार को रिक्शा चालकों को सर्दियों में पहनने के लिए जूते वितरित करने का अभियान शुरू किया है। रोजाना 10 रिक्शा चालकों में जूते वितरित किए जाएंगे।


Tuesday, January 3, 2012

Rail track between Fazilka and Abohar yet to be operational

Praful Chander Nagpal
Fazilka, January 2

The then Union Railway Minister Lal Bahadur Shastri had visited the border belt in January 1954. The staff accompanying Shastri had estimated an expenditure of Rs 25 lakh for laying the rail track between Fazilka and Abohar.

However, after a long span of 58 years, a sum of Rs 250 crore has been spent on laying the track. But it is still not operational.

"It seems that none of the official of the Central Government and the Railway Department understands the importance of the tax payer's money. The highly paid employees are not doing their job well. Had our leadership understood the importance of the revenue gains from the Fazilka-Abohar rail track, they would have made it operational by now," rued Dr Bhupinder Singh, professor, IIT Roorkee, and also patron of the Graduate Welfare Association (Fazilka).

At the fag end of the tenure of the Punjab Government, the promise to accord district headquarter status to Fazilks has been fulfilled. However, the Central Government lags behind in fulfilling yet another promise of making the Abohar-Fazilka rail link operational despite the fact that it has been a year since the entire 42-kilometer track has been laid.

Notably, employees' quarters on all the railway stations and on the track have been constructed. The staff has also been posted. The Dangarkhera ROB on the Fazilka-Abohar road has been completed.

The trains to be run on this route have already been mentioned in railway time-table. The deadlines for running the trains have been fixed a number of times.

However, the trains have not been run causing great financial loss to the Railway Department which has already spent about Rs 250 crore on the project. "The return of revenue (ROR) has not begun due to indifferent and callousness of railway department and commuters are deprived of the cheaper and comfortable journey. The residents of Fazilka and Abohar subdivisions are perturbed over the unwarranted delay in running the trains", alleged Northern India Rail Passengers Samiti Chairman Dr Amar Lal Baghla.

"We are disciplined people, we can not follow the practice of 'anshan (fast)', 'dharna (demonstration)', 'rally', 'putla phoonk (burn effigy)'. Most of the time the political will is put in the negative perspective and the employees who are 'not dutiful' get away scot-free. It is the worst kind of corruption which is stagnating the state and central governments," rued Dr. Bhupinder Singh.

"With the commissioning of this track, there would be a direct link from Jammu and Kashmir to Rajasthan and Gujrat,"said Dr. Baghla.

They have demanded the running of the trains immediately on this route for the convenience of the commuters.